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नदी की धार-सी संवेदनाएँ (नवगीत) / रोहित रूसिया
Kavita Kosh से
घट रही हैं
अब नदी की धार-सी
संवेदनाएँ
पेड़ कब से
तक रहा
पंछी घरों को
लौट आयें
और फिर
अपनी उड़ानों की खबर
हमको सुनाएँ
अनकहे से शब्द में
फिर कर रही आगाह
क्या सारी दिशाएँ
घट रही हैं
अब नदी की धार-सी
संवेदनाएँ
हाट बस
आडम्बरों के
दीखते
जिस ओर जाएँ
रक्त रंजित हो चली हैं
नेह की
सारी ऋचाएँ
रोक दो,
जिस ओर से भी आ रहीं
ज़हरीली हवाएँ
घट रही हैं
अब नदी की धार-सी
संवेदनाएँ