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नदी के बीच में सहरा लिखा था / दीपक शर्मा 'दीप'
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नदी के बीच में सहरा लिखा था
ओ उसके बीच में दर्या लिखा था
किसी के हाथ में वो भी नहीं,अर
किसी के हाथ में काँसा लिखा था
वहीं निकला कसम से ख़ूब पानी
जहाँ पर ख़ून से प्यासा लिखा था
ख़ताएँ,चाहकर के की थीं हम ने?
हमें करना पड़ा,करना लिखा था!
बुझाते क्यों भला क्योंकर बुझाते?
हमारे ख़ाब को जलना लिखा था
वफ़ा की आँ ख में आँसू लिखे थे
जफ़ा की नाक पे गुस्सा लिखा था
अजी क्यों हाय पीटें,जब ज़बीं पर
भले खोटा मगर सिक्का लिखा था
किसी की मौत लिक्खी थी कनारे
किसी को डूबकर मरना लिखा था
हमें मिलता नहीं है क्यों न जाने
हमारा भी कहीं हिस्सा लिखा था