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नदी के साथ / रवीन्द्र भ्रमर
Kavita Kosh से
चलो, नदी के साथ चलें ।
नदी वत्सला है, सुजला है,
इसकी धारा में अतीत का दर्प पला है,
वर्तमान से छनकर यह भविष्य-पथ गढ़ती,
इसका हाथ गहें
युग की जय-यात्रा पर निकलें ।
चलो, नदी के साथ चलें ।
सदा सींचती जीवन-तट को,
स्नेह दिया करती आस्था के अक्षय-वट को,
घट को अनायास पावन पय से भर देती,
इसकी लहरों में उज्ज्वल कर्मों के-
पुण्य फलें ।
चलों, नदी के साथ चलें ।
इसके आँचल की छायाएँ,
मानस के गायत्री-प्रात, ॠचा-संध्याएँ,
लहरों पर इठलातीं दूरागत नौकाएँ
जादू की बाँसुरी बजाएँ
जिनमें गान ढलें ।
चलो, नदी के साथ चलें।