नदी तट पर हम आया करते थे / अमरकांत कुमर
ऐसी तड़प, नदी-तट पर हम आया करते थे
एक-दूजे की बाहों में खो जाया करते थे।
तुम थे, हम थे और समय था, बातें करते थे
सारी रातें आँखों में कि बिताया करते थे
भोर की लाल किरण- से हम मुस्काया करते थे। ऐसी तड़प...
सपने बुने नए जीवन के सिर्फ़ बसन्त भरे
महमह अपनी फुलवारी थी जिसमें वृक्ष हरे
हरसिंगार-सी मुस्कानें बरसाया करते थे। ऐसी तड़प...
तेरी मदिरालस आँखों में मैं खो जाता था
चलते-चलते इस जंगल में मैं सो जाता था
जीवन चलना ही चलना बतलाया करते थे। ऐसी तड़प...
मन ने मन की ऊँगली धर कब चलना सीखा था
यह तो पता नहीं है, लेकिन चलना सीखा था
एक यकीं था जिसके बल बढ़ जाया करते थे। ऐसी तड़प...
हमने इक-दूजे को फूलों-सा महकाया है
कठिन धूप में शीतल बादल की हम छाया हैं
स्नेह-स्नात मन के ऊपर हम छाया करते थे। ऐसी तड़प
