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नदी तुम बहती चलो / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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रास्ते में है अँधेरे
या कुछ उजले सवेरे ।
सोचना बिल्कुल नहीं
 नदी तुम बहती चलो।
 
कुछ दूषित भावनाएँ
कुछ कलुषित कामनाएँ ।
 रोकना चाहें तुम्हें
नदी तुम बहती चलो ।

लाख काँटे या पत्थर
बिछ गए हैं रास्ते पर
गुनगुनाकर गीत तब
नदी तुम बहती चलो ।

कुछ तो करेंगे कीर्तन
कुछ भावों का विसर्जन
मौन तटों को हैं पता
नदी तुम बहती चलो ।
-0- (5-11-96 : आकाशवाणी अम्बिकापुर 6 जून 99 ,भास्कर बिलासपुर 8-12-96)