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नदी दुखी है / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र

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दुर्घटनाएँ हुईं घाट पर
नदी दुखी है

अंधे राजा के दरवाजे पर
सूरज की लाश पड़ी है
बाँट रहे धेला साहूजी
उनके द्वारे प्रजा खड़ी है

कल दंगे में ढहा दुआघर
नदी दुखी है

राख हुए पुरखे घर सारे
गाँव-गली में सन्नाटा है
जात-धरम के भेदभाव हैं -
शाहों ने सबको बाँटा है

सदमे में हैं ढाई आखर
नदी दुखी है

व्यापा कलजुग घोर नदी को
घटवारे भी हैं अपराधी
विश्वहाट को कैसे साधें
जुगत गुणीजन ने हे साधी

काँप रहा है बरगद थर-थर
नदी दुखी है