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नदी में नहाती हुई औरत / काएसिन कुलिएव / सुधीर सक्सेना
Kavita Kosh से
नदी में एक औरत नहा रही है
और दूर स्तब्ध है सूर्य ।
वह हौले से धरता है अपने कन्धों पर
अपनी सुनहरी किरणों का हाथ ।
वृक्ष दूर तक पसारते हैं अपनी छाँव
ताकि छू सकें उसका चेहरा, उसकी बाहें ।
ख़ामोश मन्त्रमुग्ध हैं नरकुल
रोड़े तक निस्तब्ध ।
दुनिया में कहीं कुछ नहीं है, फिलवक़्त
न मृत्यु, न दुख, न हताशा ।
न शीत, न झँझावात,
न सींखचे, न सलाखें, न युद्ध ।
महाद्वीप में कहीं कुछ गड़बड़झाला नहीं
चतुर्दिक शान्ति है :
नदी में एक औरत नहा रही है ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुधीर सक्सेना