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नदी मेरे घर का पता भूल जाएगी-3 / इदरीस मौहम्मद तैयब

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मैं यहाँ काँप रहा हूँ
उत्तरी बर्फ़ के स्पर्श से
मुझे एक स्त्री की गरम मुस्कराहट का स्वाद मिलता है
बस में अपने नज़दीक बैठे यात्री से
एक बूढ़े आदमी का आत्मीय चेहरा
जो उतरने के लिए अभी अपनी सीट से उठा है
नाचते अनाज के खेतों से मिली ख़ुशी
ठण्ड के कारण जम्हाई लेते
लम्बे बालों वाले घोड़ों की टापों की ताल
गाँव में सुबह के साथ फैलते उत्सव
और चरमराती घोड़ा-गाड़ियाँ
साँस भाप में तब्दील हो जाती है
और गेहूँ की बालियों के बीच
खिसकते हुए ओस बन जाती है
और सुबह
यह नई उगती सुबह
सलामों की गरमाहट से दिन में तब्दील हो जाती है
और अपनी बड़ी आँखें शाम तक
खोले रखती है ।


रचनाकाल : 27 मार्च 1979

अंग्रेज़ी से अनुवाद : इन्दु कान्त आंगिरस