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नदी हो तुम / नंदकिशोर आचार्य

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कगारों से इन कटावों-उभारों में
बँधा बहता तनतनाता जल
बीच धारा भँवर भी हैं, वेग भी
कहीं गहरे कसमसाती है उफन
नदी हो तुम !

तुम नदी हो
मुझे जिस को तैरना
उस पार जाना है
वहीं तो है तीर्थ !

नहीं, पुल से नहीं
पुल नदी की उपेक्षा है
और डरना भी !

तीर्थ तक वही पहुँचा है
जो नदी को भुजाओं में भींच लेता है।

(1977)