भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नदी - 1 / रोहित ठाकुर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वह नदी चाँद पर बहती है
किसी खाई में
वह नदी
धरती पर बहने वाली
किसी पठारी नदी की जुड़वा है
वह पठारी नदी जब गर्मियों में हाँफती है
वह नदी जो चाँद पर बहती है
उसकी आँखों से झड़ते है आँसू
और तारें टूटते हैं
मैं तारों को टूटते देखता हूँ
तारों का टूटना
दो नदी का मिलना है
मेरी कविता में
नदी ऐसे ही मिलती है
जब नदी मिलती है
उसकी वनस्पतियों का रंग अधिक
हरा हो जाता है
यहीं से लेता हूँ मैं हरापन
उन लोगों के लिये
उस पेड़ के लिये
जहाँ फैल रहा है पीलापन