भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नदी / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नदी
(हर्ष उल्लास चित्रण)
जिन पर रहते हिलते
उसके सुमधुर अधर।
शशि आलिंगित सांध्य जलद से
गिरि पर सुंदर।
वह तट पर उल्लास उछाल
छलक कर बहती।
पत्थर में वह फूल खिला
फेनिल हो हँसती।
( नदी कविता का अंश)