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नदी / सुभाष नीरव
Kavita Kosh से
पर्वत शिखरों से उतर कर
घाटियों-मैदानों से गुजरती
पत्थरों-चट्टानों को चीरती
बहती है नदी ।
नदी जानती है
नदी होने का अर्थ ।
नदी होना
बेरोक निरंतर बहना
आगे...आगे... और आगे ।
कहीं मचलती,
कहीं उद्विग्न, उफनती
किनारे तोड़ती
कहीं शांत-गंभीर
लेकिन,
निरंतर प्रवहमान ।
सागर से मिलने तक
एक महायात्रा पर होती है नदी ।
नदी बहती है निरंतर
आगे... और आगे
सागर में विलीन होने तक
क्योंकि वह जानती है
वह बहेगी
तो रहेगी ।