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नद्दी / बिंदु कुमारी

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नद्दी।
जबें भी तोरा देखै छी
तेॅ सोचैछी
हम्मेॅ कहिनेॅ नी होला नद्दी।
घाटों-घाटों सें होय केॅ-
बहतेॅ रहतियॉ-
हम्मेॅ तोरा जुंगा।
हमरोॅ छाती पेॅ, जाल बिछाय केॅ
मछुआरा फँसाबै छै मछली।
कांही किराना पेॅ तैरै छै-
नंग-धडंग बच्चा सीनी।
कांही नहाबै छै जबान बुढ़ॉे आदमी
आरो-कांही मुक्ति रोॅ आकांक्षा मेॅ
नहाबै छै ढेरी सीनी जोॅर जनानी।
आचमान करै छै हमरोॅ पानी सेॅ
मतुर तोॅ बहतेॅ ही रहै छोॅ
नद्दी।
हम्मेॅ तोरेॅ जुंगा नद्दी होतियाँ।