भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ननिहर/ अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
नानी-दादी बूढ़ी दू,
घी में छाँकलोॅ पूड़ी दू ।
नान्हौं-दादा की छै कम,
घी में छाँकलोॅ आलूदम ।
मौसी-मौसा खीर मेॅ रतुआ,
मामा जीµ जंडा के सतुआ ।
हमरा जे देलकै एक चटकन,
नाना सेॅ खैलकै दू पटकन ।