भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नन्हा-सा दीया / सुरेश विमल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खूब अंधेरे से लड़ता है
मिट्टी का नन्हा-सा दीया

बात उजाले की रखता है
मिट्टी का नन्हा-सा दीया

घर-घर दिवाली करता है
मिट्टी का नन्हा-सा दीया

आंखों में अमृत भरता है
मिट्टी का नन्हा-सा दीया

शांत चित्त होकर जलता है
मिट्टी का नन्हा-सा दीया

कष्ट झेल कर मुस्कुराता है
मिट्टी का नन्हा-सा दीया।