भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नन्हा-सा दीया / सुरेश विमल
Kavita Kosh से
खूब अंधेरे से लड़ता है
मिट्टी का नन्हा-सा दीया
बात उजाले की रखता है
मिट्टी का नन्हा-सा दीया
घर-घर दिवाली करता है
मिट्टी का नन्हा-सा दीया
आंखों में अमृत भरता है
मिट्टी का नन्हा-सा दीया
शांत चित्त होकर जलता है
मिट्टी का नन्हा-सा दीया
कष्ट झेल कर मुस्कुराता है
मिट्टी का नन्हा-सा दीया।