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नन्हे तारे / सुरेश विमल

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खिल खिल-खिल खिल हंसते तारे
दूर गगन में बसते तारे
रोज लगाते झांकी अपनी
दर्शन के हैं सस्ते तारे।

एक, चार, दस, सौ, हज़ार
यूँ अनगिनती खिल जाते तारे
रात रात भर गिनो जतन से
पर ना गिनाई आते तारे।

कभी बल्ब से चमकें चम-चम
कभी दीयों से टिमके तारे
कभी जुगनूओं से अंबर की
बालकनी से झांके तारे

आंख मिचोली खेला करते
प्यारे प्यारे नन्हे तारे
मेला ख़ूब जमाते रहते
आसमान में सुंदर तारे।