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नन्हे हाथों में / जेन्नी शबनम
Kavita Kosh से
नामुमकिन हो गया
उस सफ़र पर जाना
जहां जाने के लिए
बारहा कोशिश करती रही,
मर्जी नहीं थी
न चाह
पर यहाँ रुकना भी बेमानी लगता रहा,
ठीक उसी वक़्त
जब काफ़िला गुजरा
और मैंने कदम बढ़ा दिए
किसी ने मुझे रोक लिया,
पलट कर देखा
दो नन्हे हाथ
आँचल थामे हुए थे,
रिश्तों की दुहाई
जीवन पलट गया
मेरे साथ
उजाले की किरण न थी
पर उम्मीद की किरण तो थी
उन नन्हे हाथों में !
(नवम्बर 1995)