भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नफ़रतें देख प्यारी आँखों में / हरि फ़ैज़ाबादी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नफ़रतें देख प्यारी आँखों में
आ गये अश्क सारी आँखों में

शुक्र है फिर से लौट आई है
जीत की चाह हारी आँखों में

हम कहीं भी रहें मगर हरदम
रहते हैं वो हमारी आँखों में

मुद्दतें हो गयीं मगर अब भी
यादें बचपन की तारी आँखों में

जाने किस ढंग से लोग रखते हैं
दुश्मनी दिल में यारी आँखों में

फूल, काँटा दिखाई देता है
क्या हुआ है तुम्हारी आँखों में

चैन कैसे हो दिल में सोचो जब
छायी बेटी कुँवारी आँखों में