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नफ़रतों का काम ही था तोड़ना तोड़ा हमें / धर्वेन्द्र सिंह बेदार
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नफ़रतों का काम ही था तोड़ना तोड़ा हमें
उल्फ़तो अफ़्सोस तुमने भी नहीं जोड़ा हमें
इस क़दर तन्हा न होते हम ज़माने में कभी
बख़्श देती प्यार गर तू ज़िंदगी थोड़ा हमें
मौत हमसे थी ख़फ़ा अब तू भी निकली बेवफ़ा
ज़िंदगी तूने कहीं का भी नहीं छोड़ा हमें
आप हम पर वक़्त का ज़ुल्म-ओ-सितम तो देखिए
वक़्त ने मारा बहुत है दर-ब-दर दौड़ा हमें
ज़ख़्म दिल का बन गया नासूर अब चारागरो
अब दवा किस काम की अब ज़हर दो थोड़ा हमें
लोग वह ख़ुश हैं हमारी मौत की सुनकर ख़बर
लोग जो भी मानते थे राह का रोड़ा हमें