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नब्ज़ की कितनी बढ़ी रफ़्तार लिख दूँ / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'

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नब्ज की कितनी बढ़ी रफ़्तार लिख दूँ।
मेह्रबानी आपकी सरकार लिख दूँ।

ये ख़बर कैसी छपी अख़बार में है,
क्या व्यवस्था मुल्क की बीमार लिख़ दूँ।

रात दिन चेहरे बदलते हैं भले वो,
फिर भी नामुमकिन उन्हें मक्कार लिख दूँ।

किस तरह अपनी मुहब्बत कर दूँ रुसवा,
उनको कातिल क्या सरे बाज़ार लिख दूँ।

जो जगा दे जीने की ख्वाहिश, उसे मैं,
दिल की इस जागीर का मुख्तार लिख दूँ।

आप लग जायें गले जिस रोज़ आकर,
मैं उसी दिन ईद का त्यौहार लिख दूँ।

लीं झुका ‘विश्वास’ नजरें मुस्कुराकर,
उनकी इस चुप्पी को क्या इकरार लिख दूँ।