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नभगंगा / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
Kavita Kosh से
16
नभगंगा की
माँग भरके खिला
दूल्हा -गगन ।
17
नीलम नभ
झील में डुबकियाँ
खूब नहाए।
18
नीलम -प्याला
सोमरस माँगता
रोज चाँद से ।
19
पाखी चहके
नभ हुआ मुखर
सन्ध्या-वन्दन ।
20
फैला गगन
चीलें मार झपट्टा
कबड्डी खेलें।
21
बाहें फैलाए
है व्याकुल अम्बर
मेघ न आए ।
22
भरें कुलाँचे
न थकें तनिक भी
मेघा-हिरना ।
23
मेघों के हाथी
चिंघाड़ें टकराएँ
अम्बर काँपे ।
24
व्योम अखाड़े
ढोल तिड़क-धुम्म
मेघों की कुश्ती ।
25
सबको देखे
छुप-छुप करके
लम्पट नभ ।
26
उड़ा ले गई
अधूरे रिश्ते- नाते
बहकी हवा ।
27
उमड़े आँसू
पोंछकर चल दी
सहेली हवा ।
28
कहती हवा
नहीं कोई पराया
बहते चलो।
29
चंचल हवा
मरोड़े टहनियाँ
छेड़ती गाछ ।
30
छूकर तन
दे गई थी पवन
उनकी पाती।