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नभ-उपवन / महेन्द्र भटनागर
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इनके ऊपर आकाश नहीं ।
इस नीले-नीले घेरे का बस होता है रे अंत वहीं !
इनके ऊपर आकाश नहीं !
पर, किसने चिपकाये प्यारे,
इस दुनिया की छत में तारे,
कागज़ के हैं लघु फूल अरे हो सकता यह विश्वास नहीं !
इनके ऊपर आकाश नहीं !
कहते हो यदि नभ का उपवन,
खिलते हैं जिसमें पुष्प सघन,
पर, रस-गंध अमर भर कर यह रह सकता है मधुमास नहीं !
इनके ऊपर आकाश नहीं !