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नभ में ऊँची उड़ी पतंग ! / कन्हैयालाल मत्त
Kavita Kosh से
लहर-लहर लहराई,
नभ में ऊँची उड़ी पतंग !
ठुमक-ठुमक कर चाल दिखाती,
इठलाती, बल खाती जाती,
आसमान में उठती जाती —
तेज़ हवा के संग !
नभ में ऊँची उड़ी पतंग !
कभी तैरती ऊँचे तल पर,
गोता खाती उछल-उछलकर,
डुबक-डुबक करती मछली-सी —
भरकर नई उमंग !
नभ में ऊँची उड़ी पतंग !
डोरी के बन्धन में रहकर,
ऊँचे-नीचे झटके सहकर,
आगे बढ़ती जाती, जैसे —
मन की एक तरंग !
नभ में ऊँची उड़ी पतंग !