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नमः श्रीकालिके / रामइकबाल सिंह 'राकेश'

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जय निर्वाणप्रदे,
परात्परे, जय कुसुमप्रिये, निधिदे, वरदे।

परम व्योम की वीणा में तुम शब्दात्मा,
तम का नियमन करने वाली सर्वात्मा।
तुम हो मेघमालिनी, तुम हो दुर्गम्या।
जय हे सर्वमंगले, कुसुमगन्धिनी हे,
जय हे कृष्णपिंगले, कालकंठिनी हे।

ब्रह्मप्रणव की तुम प्रकाशिका मन्त्रवती,
तुम हो चन्द्ररूपिणी, तुम हो चन्द्रवती।
दीप्ति बढ़ानेवाली रवि की प्रभावती,
ओत-प्रोत करुणा से तुम हो कृपावती।
उदयविभवलय की अचिन्त्य व्यंजनामयी,
तुम मेरी अर्चना आत्मचिन्तनामयी।

अपरा-पराशक्तिरूपा तुम ज्ञानमयी,
मूल प्रकृति की जननी तुम विज्ञानमयी।
क्या न तुम्हारे रूप गोमती, वेत्रवती,
दिव्यगतिप्रदा गंगा, यमुना सरस्वती?
तुमसे ही परिपूर्ण दिशाएँ छन्दमयी,
कुसुमदीपिता धरा गन्धमकरन्दमयी।

सिद्धों की सेनानेत्री तुम सुरेश्वरी,
महाशक्ति लीलाविलासिनी महेश्वरी।
जय ऋषिदेव वन्दिते जय-जय महाबले,
जय हे रत्नकुण्डले ब्रह्मानन्दकले।
कोटि-कोटि ब्रह्माण्ड नायिके, शौर्यमयी,
नमो नमः हे महाकालिके आग्नेयी।