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नमक की दुनिया / हेमन्त कुकरेती
Kavita Kosh से
नमक की दीवार है
आकाश
नमक के पक्षी
जब आवेश या प्रेम में थरथर काँपते हैं
तो उनके पंख नहीं
नमक झरता है
जंगल का नमक होती हैं वनस्पतियाँ
जो ढाँपे रहती हैं
जली हुई धरती और बंजर
मेरा नमक पसीने में बहता है
और तेजाब जितनी शक्ति मिलती है
मेरे ख़ून को
पृथ्वी नमक की बनी है
जीवन का स्वाद है
उसकी करुणा
सागर की लहरों में
जो उफनता है
वह नमक ही है
हवा का नमक जीने की तपन से
देता है राहत
आग राख होकर बनती है नमक
होती है शान्त
समय का नमक
चूस लेता है मनुष्य को
पानी बनकर बहता रहता है
जीवन का नमक