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नम अँधेरे में उम्मीद / राकेश रोहित
Kavita Kosh से
झर गया हूँ
पत्ते से कहता हूँ
पर टूटा तो नहीं हूँ!
टूट गया हूँ
पेड़ से कहता हूँ
पर उखड़ा तो नहीं हूँ!
उखड़ गया हूँ
जड़ से कहता हूँ
पर सूखा तो नहीं हूँ!
सूख गया हूँ
बीज से कहता हूँ
और चुप रहता हूँ!
इस नम अँधेरे में जन्मना है तुम्हें फिर
कहता है इस बार बीज।