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नम जो आँखों में हरदम मुसकाया है / रंजना वर्मा

नम जो आँखों में हरदम मुस्काया है
है न वहम वह तो मेरा हमसाया है॥

कहने को हम अब भी हैं मुसका लेते
दिल पर शायद अब भी ग़म का साया है॥

जब भी उतरा छत पर है कोई पंछी
लगता साजन का संदेशा आया है॥

सहमी सहमी-सी आई है बरसातें
आँखों ने भी कितना जल बरसाया है॥

साथी साक़ी पैमाने की बात न कर
इश्क़ नशा तो अब भी मुझ पर छाया है॥

डगमग होते पाँव संभल भी जायेंगे
किस ने किस को कब घर तक पहुंचाया है॥

होती पूजा मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे
रब ने लेकिन किसको पास बुलाया है॥