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नम है आकाश / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
पेड़ से लिपट कर
रोई हो जैसे रात :
निशाँ जिसके अभी बाक़ी हैं
फूलों पर।
पेड़ जैसे रोया हो
रख कर सर
पानी की गोदी में :
झील में तैरते हैं झर
गए जो पात।
आकाश के सीने में
खोई
रोई होगी झील
तभी तो नम है
अभी तक आकाश।