भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नयका हितोपदेश / मन्त्रेश्वर झा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खाउ, खाउ खाउ
जेना तेना खाउ
जकर तकर खाउ
खायबे तऽ जीवन छी
फूसि फासि खाउ
ठूसि ठासि खाउ
देखब कतौ हुसब नहि
लूटि पाटि खाउ,
यैह युगधर्म छी
एकरे गुण गाउ,
झंडा हो अंडा हो
जत्ते हथकंडा हो
सभ किछु अजमाउ,
हेहरपन थेथरपन
जतबा हो छुतहरपन
पावर लग भजाउ
खाउ खाउ खाउ
जकर तकर खाउ
जेना तेना खाउ
नाक दाबि कान मूनि
जते जे पचाउ
आँखि मे बचल पानि
स्वयं घोटि जाउ,
पढ़ब लिखब व्यर्थ छी
पढुआ के पढ़ाउ,
भरुआ बनि पावर के लत्ती
बनि जाउ,
विरोधी केँ छोडू़ नहि
लुत्ती बनि जाउ,
कमाउ कमाउ कमाउ,
पटाउ पटाउ पटाउ,
खाउ खाउ खाउ,
बिकाउ बिकाउ बिकाउ
बनाउ बनाउ बनाउ
गायब तऽ गाउ
जय जयकार गाउ
नहि तऽ मिमिआउ,
हाथ काटि आउ,
माथ के झुकाउ
केओ लतिबाअय तऽ
लट्टू बनि जाउ,
टट्टू बनि जाउ,
कौआ बनि जाउ
सभकेँ फुसिआउ,
ककरो कुकुर बिलाड़ि बनि
हड्डी लऽ जाउ
गड्डी लऽ पड़ाउ
पाप कें पचाउ
बाप कें चिबाउ
जाति केँ नचाउ
यैह नव हितोपदेश
आर की सुनाउ।