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नयनवाँ से लोर झरे / जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

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हिया बेंधेले संवरिया के बाति
नयनवाँ से लोर झरे॥

जागल जबसे बा पहिली पिरितिया
रहि-रहि उभरेले सँवरी सुरतिया
मोहें निदिया न आई भर राति
नयनवाँ से लोर झरे॥

रहिया निरेखी बीतल दुपहरिया
मन मुरुझाई जाय लखते दुवरिया
बुला आई जाँय रतिओ-बिराती
नयनवाँ से लोर झरे॥

हुन टुन ननदी के गभिया सुनाला
मुसुकी से ओकरा बोखार चढ़ि जाला
उहो डाहेले सवतिया के भाँति
नयनवाँ से लोर झरे॥

हिया बेंधेले संवरिया के बाति
नयनवाँ से लोर झरे॥