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नयनों में / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'
Kavita Kosh से
रहे चाँदनी रात, तुम्हारे नयनों में ।
हँसता रहे प्रभात, तुम्हारे नयनों में ।
रहे अधर पर उषा मुस्काराती हरपल,
मत आये बरसात, तुम्हारे नयनों में।
मुधशाला है विवश करे क्या कर मलती,
झरते मदिर प्रपात, तुम्हारे नयनों में ।
पाता है जो झलक भूल पाता न कभी,
है कुछ ऐसी बात, तुम्हारे नयनों में ।
मुमकिन कहाँ जमानत इस मन मधुकर की,
कैद हुआ, जलजात तुम्हारे नयनों में ।
जब चाहों तब ध्वस्त करो धरती अम्बर
ध्वंसक झंझावात तुम्हारे नयनों में ।
हिल जाते मन प्राण एक क्षण दर्शन कर,
संयम खाता मात, तुम्हारे नयनों में ।