नयन में उमड़ा जलद<ref>बादल</ref> है ।
नभ व्यथा<ref>पीड़ा, दुख</ref> का भी वृहद<ref>बड़ी</ref> है ।
आँसुओं से तर-बतर है
यह कथानक<ref>कहानी</ref> भी दुखद है ।
इस दफ़ा मौसम अजब है
आग मन में तन शरद<ref>ठंडा</ref> है ।
दोष क्या दें अब तिमिर<ref>अंधेरे</ref> को
रोशनी को आज मद<ref>नशा</ref> है ।
नींद को कैसे मनाएँ
ख़्वाब की खोई सनद है ।
त्रासदी ‘वर्षा’ कहें क्या ?
शत्रु अब तो मेघ ख़ुद है ।
शब्दार्थ
<references/>