भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नया गीत गावे द / हरेश्वर राय
Kavita Kosh से
खोल द केवाड़ी आ तेज हवा आवे द
कोना के सीलन के गरदा उड़ावे द I
साँस लिहल मुसकिल बा घुटता दम
फोरे द देवाल एगो खिड़की बनावे द I
आज रतिया सियाही से बिया नेहाइल
दीया के टेम्ही से खोठी हटावे द I
चारु देने फइलल बा चुप्पी के जंगल
चुप्पी के जंगल प ढेला चलावे द I
बंदी जुबान के रिहाई जरूरी बा
जाए द बहरी आ नया गीत गावे द I