भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नया घोसला / जेन्नी शबनम
Kavita Kosh से
प्यारी चिड़िया
टुक-टुक देखती
टूटा घोसला
फूटे जो सारे अंडे
सारे के सारे
मरे अजन्मे चूजे,
चीं-चीं करके
फिर चिड़िया रोती
सहमी हुई
हताश निहारती
अपनी पीड़ा
वो किससे बाँटती
धीर धरती ।
जोड़-जोड़ तिनका
बसेरा बसा
कितने बरस व
मौसम बीते
अब सब बिखरा
कुछ न बचा
जिसे कहे आशियाँ,
बचे न निशाँ
पुराना झरोखा व
मकान टूटा
अब घोसला कहाँ ?
चिड़िया सोचे -
चिड़ा जब आएगा
वो भी रोएगा
अपनी चिड़िया का
दर्द सुनेगा
मनुष्य की क्रूरता
चुप सहेगा
संवेदना का पाठ
वो सिखाएगा !
चिड़ा आया दौड़ के
चीं-चीं सुनके
फिर सिसकी ले के
आँसू पोछ के
चिड़ी बोली चिड़े से -
चलो बसाएँ
आओ तिनके लाएँ
नया घोसला
हम फिर सजाएँ
ठिकाना खोजें
शहर से दूर हो
जंगल करीब हो !
(सितम्बर 29, 2012)