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नया तुम गीत सुनाओ / विनीत मोहन औदिच्य

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जीवन के तुम मीत, बनो अब नित्य सहारा
नाव न होगी दूर, दिखे जो पास किनारा
सावन के जो गीत, तुझे हर बार लुभाते
आंगन मचती धूम, मुझे कर शोर बुलाते ।

आज उठी है तान, नया तुम गीत सुनाओ
होकर मन से लीन, बड़ा त्यौहार मनाओ
रंग चटख तुम घोल, भरो अभिमान मरेगा
चल नटवर की चाल, यहाँ आह्लाद भरेगा ।

सोच रहा हूँ मौन, हुई कब प्रीति पुरानी
क्रूर नियति का खेल,लिखे वाचाल कहानी
रूप करे जब मान, सदा आभार करूँगा
सत्य वचन तब बोल, प्रिया उपहार बनूँगा।

जीत रहे अनमोल , नहीं तुम हार वरोगे ।
ले प्रभु का तुम नाम, दुखों को पार करोगे।।