भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नया प्रकाश / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


नया प्रकाश है
नया प्रकाश !
दीप्यमान ओर-छोर
अंधकार मिट रहा अछोर घोर !
:
वास्तविक स्वरूप नग्न सामने -
असंख्य क्षीण-दीन,
जीर्ण-शीर्ण
भग्न
सामने खड़े हुए
क़तार में मनुज !
धुआँ-धुआँ
घिरा !
:
कि आसमान में
घुमड़ रहे
डरावने विशाल मेघ !
चीरता हुआ गगन
नवीन विश्व का
नवीन शिशु निकल
समाज के प्रवीण रंगमंच को
निहार बढ़ रहा।
:
प्रकाश देख काँपती
परम्परा,
प्रकाश देख डगमगा रहीं
:
कल पुराण रूढ़ियाँ !
नवीन चेतना,
नवीन भावना,
विचार नव्य-भव्य औ’
नवीन आश है !
नवीन आश है !
नया प्रकाश है,
नया प्रकाश है !