नया बैंक / मंगलेश डबराल
नया बैंक पुराने बैंक की तरह नहीं है
उसमें पुराने बैंक की कोई छाया नहीं है
उसका लोहे की सलाख़ों वाला दरवाज़ा और उसका अंधेरा नहीं है
लॉकर और स्ट्रांगरूम नहीं है
जिसकी चाभियां वह खुद से भी छिपाकर रखता है
वह एक सपाट और रोशन जगह है विशाल कांच की दीवार के पार
एअरकंडीशनर भी बहुत तेज़ है
जहाँ लोग हांफते पसीना पोंछते आते हैं
और तुरंत कुछ राहत महसूस करते हैं
नये बैंक में एक ठंढी पारदर्शिता है
नया बैंक अपने को हमेशा चमका कर रखता है
उसका फ़र्श लगातार साफ़ किया जाता है
वह अपने आसपास ठेलों पर सस्ती चीज़ें बेचने वालों को भगा देता है
और वहां कारों के लिए कर्ज़ देने वाली गुमटियां खोल देता है
बैंक के भीतर मेजें-कुर्सियां और लोग इस तरह टिके हैं
जैसे वे अभी-अभी आये हों उनकी कोई जड़ें न हों यह सब अस्थायी हो
नया बैंक पुराने बैंक से कोई भाईचारा महसूस नहीं करता
वह उसे अपने इलाक़े के पिछड़ेपन का कारण मानता है
और कहीं दूर ढकेल देना चाहता है
नये बैंक में वे ख़ज़ांची नहीं हैं जो महान गणितज्ञों की तरह बैठे होते थे
किसी अंधेरे से रहस्यमय पूंजी को निकाल लाते थे
और एक प्रमेय की तरह हल कर देते थे
वे प्रबंधक नहीं हैं
जो बूढ़े लोगों की पेंशन का हिसाब संभाल कर रखते थे
नया बैंक सिर्फ़ दिये जानेवाले कर्ज़
और लिये जानेवाले ब्याज का हिसाब रखता है
प्रोसेसिंग शुल्क मासिक क़िस्त पेमेंट चार्जेज़ चक्रवृद्धि ब्याज लेट
फ़ाइन और पैनल्टी वसूलता है
और एक जासूस की तरह देखता रहता है कि कौन अमीर हो रहा है
किसका पैसा कम हो रहा है कौन दिवालियेपन के कगार पर है
और किसका खाता बंद करने का समय आ गया है।