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नया वर्ष और कबूतर / बेणुधर राउत / दिनेश कुमार माली

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रचनाकार: बेणुधर राउत (1926)

जन्मस्थान: हरिचंदनपुर, केंदुझर

कविता संग्रह: पिंगलार सूर्य(1967)


वसुंधरा इस मिट्टी के कमजोर शरीर में
प्राण को प्रीति देकर
छंद को विरति देकर
समग्र स्नेह में
तूलिका से रंग दिए छह ऋतुओं के
छह रंग--मंजुल, मधुर।

उसके बाद
दिया बो
अमृत रस भरकर
तारुण्य की हंसी भर
धब्बेदार सवेरे का विद्रुम विलास
संध्या की हरिद्र लहर
दिन के उजियाले में रात की छाया के लालित्य का
सफेद- सफेद, बिंदु- बिंदु
बादल फिर चित्र बनाते
आकाश की शून्यता को भरने के लिए
सुषमा की पूर्णता को पकड़ने के लिए
खिला देते हैं शिव की कनक जटाएं
यह मेरा नूतन वर्ष-उन्नीस सौ चौवन की तस्वीर
इस तस्वीर में धीरे- धीरे
प्रियतम, हे मेरे कपोत !
गीतों में डोलकर
प्रेम से बोलकर
नीले आकाश में फैले जहाज
किनारे- किनारे उड़ते बादलों के।

हर दिशा में डूबते जाओ
इस वन विभूति में
हर देश में उड़ते जाओ
मानव-मन में जहाँ स्वार्थ को कोहरा
घिरते- घिरते चला जाता है
चलते- चलते घिर जाता है
सुख शांति प्रगति के प्रकाश को दलते हुए, भूलते हुए
सम्मान के साथ बिछा दो
सम- आत्माओं का परिमल -पक्ष
एक नजर डालते हुए सींच दो
शांति, गीत
कांति, प्रीत
अंतस सजीव सौंदर्य।

यह मेरे मर्म की भाषा
तुम मेरी छबि के प्राण
इस धरती की विपुल आशा
शुभ करो,
शुभंकर
हे कपोत, शिव, महीयान।