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नया साल / ऋता शेखर 'मधु'

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नया साल लेकर आया है, पीत सुमन के हार।
नए गगन में अब लो पंछी, अपने पंख पसार॥
हम बसंत के मस्त पवन में, गाएँ अपना गान।
झंडा ऊँचा रहे हमारा, बढ़े देश का मान॥

हिम की नदिया जब पिघलेगी, फेनिल होगी धार।
सुर की देवी फिर छेड़ेंगी, निज वीणा के तार॥
नीला-नीला अम्बर होगा, होंगे प्रेम पराग।
मेघ नेह का जब उमड़ेगा, उमग उठेगा फाग॥

गले मिलेंगे भाई भाई, मिट जाएँगे द्वेष।
चैत्र माह में फिर पाएगा, अपना सूरज मेष॥
कोयलिया राग सुनाएगी, महक उठेंगे बौर।
फूलों की डोली लाएँगे, ऋतुओं के सिरमौर॥

नारी मर्यादा लौटेगी, खुशियाँ होंगी पास।
जात पात का भेद न होगा, ऐसा है विश्वास॥
मानवता की चौखट पर, सुरभित होगा हर्ष।
दिल से दिल के तार बँधेंगे, आएगा नव वर्ष॥

योग दिवस का गुरु है भारत, जग में इसका मान।
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण, लेते हमसे ज्ञान॥
सदियों से ऋषियों मुनियों ने, अपनाये हैं योग।
बदल ढंग जीवन जीने का, इसको भूले लोग॥