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नये अर्थ की प्यास में / भवानीप्रसाद मिश्र

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नये अर्थ की प्यास में डूब गया शब्द
मन का गोताख़ोर डूब गया उभरकर
भँवर में अविश्वास के

हुआ ही कुछ तो यह हुआ कि
उमड़ लिये धारा के ऊपर–ऊपर
संदर्भों के घन और फिर वे भी
झंझावत में उड़ गये

बरस लिये शायद जाकर किन्हीं
अनजाने मैदानों में

और छू गई अगर आकर ठंडी हवा
उन प्रांतरों की तो छटपटाये
नये अर्थों के लिए डूबे–डूबे शब्द
छूकर ठंडी हवा

पानी की लकीरें बनकर
रह गये डूबे–उभरे शब्द

सन्दर्भों भरी भँवरी से
वापिस ही नहीं हुए
मोती के लिए ताल तक पैठे हुए
मछुए!