नये इंसान से तटस्थ-वर्ग / महेन्द्र भटनागर
ओ नये इंसान !
तुमसे एक मुझको बात करनी है;
बात वह ऐसी कि जिसको
वर्ग के मेरे अनेकों
मर्द, औरत,
वृद्ध, बच्चे, नवयुवक
सब चाहते हैं आज तुमसे पूछना।
और वह है ज़िन्दगी की
आज से बेहतर, नयी, खुशहाल
प्यारी ज़िन्दगी की बात !
जो कि उस दिन,
याद है मुझको
अधर में रुक गयी थी,
क्योंकि तुम संघर्ष में रत थे !
विरोधी चोट से सारे
तुम्हारे अंग आहत थे !
तुम्हारे पास, पर,
उज्ज्वल भविष्यत् का बड़ा विश्वास था,
आदमी की शक्ति का इतिहास था;
उसकी विजय का चित्र
आँखों में उभरता था,
युगों का स्नेह
इस घायल धरित्री पर बिखरता था,
तभी तो तुम
दमन के बादलों को चीर कर
काली मुसीबत की
भयानक रात का उर भेद कर,
अभिनव किरण बनकर
नये इंसान की संज्ञा
जगत से पा रहे हो !
और उसको तुम
प्रगति पथ पर
सतत ले जा रहे हो !
पास मंज़िल है,
उछलता भोर का दिल है,
बड़ा नज़दीक साहिल है !
भरोसा है मुझे निश्चय
तुम्हारे हर इरादे पर,
अकेली बात इतनी है
कि तुम कैसी नयी दुनिया बनाओगे ?
हृदय में आज मेरे भी
नयी रंगीन दुनिया की
नयी तसवीर है,
दुनिया को बदलने की
प्रसविनी पीर है !
क्या तुम उसे भी देख
मुझको साथ लेकर चल सकोगे ?े
क्योंकि मैं अबतक
विलग, निर्लिप्त तुमसे
मध्यवर्ती,
दूर,
और तटस्थ था !
1951