भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नये क्रम में / नंदकिशोर आचार्य

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


बर्फ बाहर गिर रही है।

यह अलाव भी बुझ चला-सा है
एक अधजली लकड़ी से मैं
झाड़ता हूँ राख
बुझ रही लकड़ियों को
नये क्रम में
पुनः चुनता हूँ।

फूँक से जगाता हूँ आग
सोयी हुई
एक धीमा ताप
सब पर व्याप
जाता है
मीठा और उदास।

बर्फ बाहर गिर रही होगी।

(1984)