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नये क्रम में / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
बर्फ बाहर गिर रही है।
यह अलाव भी बुझ चला-सा है
एक अधजली लकड़ी से मैं
झाड़ता हूँ राख
बुझ रही लकड़ियों को
नये क्रम में
पुनः चुनता हूँ।
फूँक से जगाता हूँ आग
सोयी हुई
एक धीमा ताप
सब पर व्याप
जाता है
मीठा और उदास।
बर्फ बाहर गिर रही होगी।
(1984)