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नये वर्ष का नव विहान है / राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल
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नये वर्ष का नव विहान है, किन्तु किरण क्या अर्वाचीन?
शाश्वत सिंधु की उर्मि लहरिया, हो सकी नहीं प्राचीन।
कालजयी नश्वरता में नूतन का, होता सत्वर है अभिषेक।
प्राण प्रतिष्ठित होकर मूरत, विनिमज्जित हो, यही विवेक।
युग का समय-चक्र नित संचरे, पल-पल निर्मित अभिनव सृष्टि।
मवंन्तर का समार्थ्य प्रकट हो, गढ़ो सत्य शिव सुन्दर दृष्टि।
अहं-तुष्टि में उलझे, आओ, सब मिल छोटे काम सँवारें।
पल-पल घड़ियाँ से ऊपर उठ हम युग-जीवन को तारें।