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नये हुए थे इन्द्रधनुष हम / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
वही पुरानी
पगडंडी यह
जिस पर हमतुम साथ चले थे
बरसों पहले की वह घटना
नये हुए थे इन्द्रधनुष हम
सपने थे तब ओसभिगोये
साँसें भी थीं मीठी पुरनम
हमने संग जो
रची सुबह थी
उसके अनुभव सभी भले थे
पाँव-पाँव हमने नापी थी
जहां सूर्य रहता
वह घाटी
जहाँ चाँद ने बोई पूनो
छूकर देखी हमने माटी
पर्वत पर थे
चढे. संग हम
ढालों पर सँग-सँग फिसले थे
कभी नदी का बहना देखा
बैठे कभी झील के तट पर
बांच हठी रोमांस हमारा
खूब हंसे थे पुरखे पत्थर
थकेहुए
बूढे. सैलानी
देख हमारा पर्व जले थे