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नरेंद्र / शीतल साहू

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एक हुए नरेन्द्र
सप्तऋषि मंडल के ऋषि
आये थे इस धरा पर उतरकर
दिखाने धर्म का वैभव
बढ़ाने भारत का गौरव।

जगाने स्वाभिमान सभी का
करने उत्थान सभी का
पढ़ाने पाठ मानवता का
मिटाने तमस अज्ञानता का।

पिलाने धर्म का अमृत
सिखाने कर्म का महत
बताने पथ दिव्य लोक का
पहुँचाने सभी को शिव लोक तक।

एक है नरेन्द्र
आये वही कहीं ब्रम्हलोक से
भारत भूमि की खोई पहचान दिलाने
अमीर गरीब की भेद मिटाने
धर्म की खोई गौरव लौटाने
भारत की खोई अस्मिता लौटाने।

आक्रांताओ को सबक सिखाने
हठ वादियों को राह पर लाने
पीड़ित नारियों को न्याय दिलाने
अन्याय और भ्रष्टाचार मिटाने
पर निर्भरता की बेड़ी काटने।

संपन्नता की प्रकाश फैलाने
रामराज को साकार करने
खोई धर्म की भव्यता निखारने
विज्ञान को नई ऊंचाई दिलाने
समाज को एकसूत्र में बाँधने।

दो नरेंद्र आ गए है इस धरा पर
समाज में व्याप्त बुराइया मिटाने
समस्याओं का हल निकालने
सबको उलझनों से निकालने
लोगो को प्रगति का मार्ग बताने
लोगो को उच्च शिखर तक पहुँचाने।

हमारी दशा भी है बिगड़ी
हमारी जीवन भी है अधर में लटकी
विपदाओं की बादले है मंडरा रही
जीवन नैया भी बीच भँवर में है डोल रही

हमारी अखियाँ भी ढूँढ रही
हमारे नरेंद्र की राहें ताक रही
संकटमोचन को ढूँढ रही
अंधेरे में प्रकाश को तलाश रही।

बीच भँवर में फसे नाव को निकालने
तूफान में घिरे लोगों को हटाने
इस घोर विपदा से उबारने
ठाकुर के कारज को करने
श्री माँ की आशीष बाटने
दुखित पीड़ित को तारने।

सप्तऋषि मंडल से उतरकर
नाम नहीं तो गुण कर्म को धारणकर
विपदा में संकटमोचन बनकर
बीच भँवर में कस्ती बनकर
डूबते का सहारा बनकर।

हे नरेन्द्र अब तो आओ
तरस हम दुखियो पर खाओ
हृदय में तनिक कोमलता लाओ
सोच में तनिक उदारता लाओ
मन में तनिक मानवता जगाओ
हे नरेंद्र, बस अब तो आ जाओ।