भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नर्क में / नजवान दरविश / श्रीविलास सिंह
Kavita Kosh से
एक
1930 के दशक में
समझ आया नाज़ियों को
डालना अपने शिकारों को गैस चैम्बर में
आज के बधिक हैं अधिक पेशेवर :
वे रख देते हैं गैस चैम्बर
अपने शिकारों के भीतर
दो
नर्क में, 2010
नर्क में जाओ
अनधिकृत अधिवासियों, तुम और तुम्हारी सन्तति
और नर्क में चली जाए समूची मानवजाति
यदि वह दिखती है तुम्हारे जैसी
नर्क में जाएँ उनकी नावें और हवाईजहाज़,
बैंक और विज्ञापनपट
मैं चीख़ता हूँ — “नर्क में जाओ… “
अच्छी तरह जानते हुए कि मैं ही
हूँ, बस, एकमात्र
जो
रहता है वहाँ
तीन
इसलिए मुझे लेटने दो
और रखने दो मेरा सिर नर्क के तकिये पर
अँग्रेज़ी से अनुवाद : श्रीविलास सिंह