भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नर्मदा के जल बताओ / अमरनाथ श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
जब अकेले तुम चले थे
तब तुम्हारे साथ क्या था
नर्मदा के जल बताओ
था तुम्हारे पास ऐसा क्या
कि अपना घर बसाओ
आदिवासी अमरकण्टक पिता —
क्या देता बताओ
तुम्हें रचने में किसी —
सम्भावना का हाथ क्या था
नर्मदा के जल बताओ
सतपुड़ा के जंगलों का —
सो गया संसार जैसे
देखता आकाश भूखे भील —
का परिवार जैसे
किन्तु ऐसी नीन्द पर
अविरल, अनन्त प्रपात क्या था
नर्मदा के जल बताओ
थकी-हारी देह टूटी
बँध गए तुम फ़ासलों में
एक लम्बी उम्र गुज़री
पत्थरों के काफ़िलों में
आँख भर आई जहाँ
जल का वहाँ अनुपात क्या था
नर्मदा के जल बताओ
इस तरह खुलकर
गले मिलती हुई नदियाँ कहाँ थीं
संगमरमर के कगारों की —
मुखर छवियाँ कहाँ थीं
तब कहाँ तीरथ बने थे
और भेड़ाघाट क्या था
नर्मदा के जल बताओ