भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नर्मदा / जया पाठक श्रीनिवासन
Kavita Kosh से
तुमने सुनी है
प्रेम कथा
नदी और आदिवासी युवक की
पहाड़ साक्षी है
जंगल ने भी देखा
कि कैसे
युवक का खोल देना
अपने खेत की मेड़
अभिसार का आमंत्रण है
वो मचल कर आती
घुस जाती
उसके खेत में
हरे धान सी लहराती
युवक भी जाता
सांझ उसके किनारे
छेड़ता है बिहाग में गीत
मन का
जाल डालता
नदी के देह की मछलियां चुनता
नदी उसके गाँव को
छूने आती
छूकर लजाती बढ़ जाती बार बार
संकोच से भरी
फिर फिर लौट आती
उसका गोपन प्रेम
केवल वह आदिवासी युवक जानता है
नदी बाँधने वाला महानगर
ये कथा
नहीं समझ सकेगा कभी