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नवगीत - 2 / श्रीकृष्ण तिवारी

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भीलों ने बाँट लिए वन
राजा को खबर तक नहीं

पाप ने लिया नया जनम
दूध की नदी हुई जहर
गाँव, नगर धूप की तरह
फैल गई यह नई ख़बर
रानी हो गई बदचलन
राजा को खबर तक नहीं

कच्चा मन राजकुंवर का
बेलगाम इस कदर हुआ
आवारे छोरे के संग
रोज खेलने लगा जुआ
हार गया दांव पर बहन
राजा को खबर तक नहीं

उलटे मुंह हवा हो गई
मरा हुआ सांप जी गया
सूख गए ताल -पोखरे
बादल को सूर्य पी गया
पानी बिन मर गए हिरन
राजा को खबर तक नहीं

एक रात काल देवता
परजा को स्वप्न दे गए
राजमहल खंडहर हुआ
छत्र -मुकुट चोर ले गए
सिंहासन का हुआ हरण
राजा को खबर तक नहीं