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नवग्रह / अंकावली / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

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1. सूर्य -
जनिक ज्योतिसँ जगमग अगजग जीवित जीव जहान
जनि आलोक लोक-लोकालय आलोकित ग्रह चान
जत भूगोल खगोल गगन बिच आकर्षित गतिवान
दिक्-कालक प्रमान प्रभु ग्रहपति जयतु भानु भगवान
2. चन्द्र -
जनिक समान न कान्ति सरस शीतल सुषमाक निधान
जे रमनीक वदन छवि कवि हित विदित जगत उपमान
अंक कलंकहु गुन-आगर दोषाकर अमृत निधान
अरस शुष्क विज्ञान कहथु किछु सरस सुधामय चान

3. मंगल -
क्रूर प्रकृति प्रचलित ग्रह विग्रह मंगल सुवदित लोक
भूमिपुत्र कहबैछ यदपि अछि दूर गगन आलोक
रक्त वरन अनुरक्त भक्त हित करुना कनक प्रसक्ति
जग जंगल जीबन दंगल बिच मंगलहिक करु भक्ति

4. बुध -
तारापति गुरु वा चानहु वा जनक कोन बुध जन्य?
सौम्य बोधमय उभय अभिजने बुध ग्रह जगत अनन्य
घुमथु निकट रवि कवि क बीच बसि साँझ-प्रात रुचिवत
स्वयं बुध-ग्रह पूर्वाग्रह बिनु योगहि ग्रहनक अंत

5. वृहस्पति -
आकार क सदृशे प्रज्ञा नामक गुण, विदित विचार
रेखा मात्र वक्र गति सचारें पड़इछ अतिचार
गुण गौरवसँ सुरहुक गुरु पद पूजित ज्ञान वसिष्ठ
विज्ञानहुँ गरिष्ठ, से केन्द्र बृहस्पति बसथु वरिष्ठ

6. शुक्र -
जनिक दृश्य भय समय शुद्ध हो, सन्ध्या प्रात यदर्थ
नव कल्पनेँ, नीति रचनेँ कवि नाम जनिक अन्वर्थ
संजीवनी सदृश विद्या जनितहुँ, शुक्लहुँ सब व्यर्थ
जखनहि ग्रहण कयल असुरक दल गुरुपद अपद अनर्थ

7. शनि -
मन्द प्रकृति, गति मन्द शनैश्चर, दृग्गोचर अपघात
एक राशि मे वास सात सालहुँ तदधिक उत्पात
रविसुत चन्द्र सप्तकहु, वेष्टित इष्ट न ककरहु तात
संकट-विकट अशनि सन रहितहुँ शनि! सुनु शांतिक बात

8. - 9. राहु केतु -
छायामय छलमय, मुख अमृत, हलाहल हृदय रखैत
रुण्ड मुण्ड दुहु खण्ड भेनहुँ एखनहुँ अहँ क्रूर फनैत
रवि शशि ग्रहणेँ, तम संग्रहणेँ, राहु-केतु कहबैत
आबहुँ भावहुँ मे नहि तनबे शान्ति अनत मनबैत